कहानी का रास्ता कोई सपाट रास्ता नहीं होता : कुलाधिपति चौबे


वरिष्ठ कवि–कथाकार, विश्व रंग के निदेशक एवं डॉ सीवी रमन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे के ताजा निबंध संग्रह ‘कहानी का रास्ता’ का लोकार्पण समारोह पूर्वक वनमाली सभागार, स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय, भोपाल में अतिथियों द्वारा किया गया।लोकार्पण अवसर पर संतोष चौबे ने ‘कहानी का रास्ता’ पर विचार रखते हुए ‘वनमाली जी’ को स्मरण करते हुए कहा कि कहानी का रास्ता कोई सपाट रास्ता नहीं होता। वह स्मृतियों से स्मृति में, मन से मन में और समय से समय में प्रवेश कर जाने वाला रास्ता है। कभी टेढ़ा–मेढ़ा, कभी घुमावदार, कभी पहाड़ों और कन्दराओं से गुजरा और कभी मैदान में सरपट भागता। संतोष चौबे ने नये रचनाकारों के हक में जरूरी बात करते हुए कहा कि नये रचनाकारों को आत्मीयता से सुनने की जरूरत होती है। कई मर्तबा आलोचक नये लेखक के लिखे की इस तरह से आलोचना कर देते है कि वह नया रचनाकार पद दलित हो जाता है। कभी–कभी वह लेखन से ही विमुक्त हो जाता है। इससे हिंदी का रचना संसार सिकुड़ता जाता है। हमें नये रचनाकारों का हमेशा स्वागत करना चाहिए। उन्हें परिष्कृत करने का कार्य वरिष्ठ रचनाकारों और आलोचकों का दायित्व होना चाहिए।उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में ‘कहानी का रास्ता’, ‘आज की कहानी’, ‘कहानी कहाँ है?’, ‘कहानी में प्रेम’, ‘कहानी में दृश्य विधान’, ‘शब्दों के पार अर्थ की तलाश’, ‘कथा भोपाल’, ‘कहानी में नयेपन की तलाश’, ‘हिंदी कहानी के दो सौ बरस’, ‘विज्ञान कथाओं का अद्भुत संसार’ जैसे महत्वपूर्ण आलोचनात्मक निबंधों को संग्रहित किया गया है।
विश्व रंग के अंतर्गत आईसेक्ट पब्लिकेशन, स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय एवं वनमाली सृजन पीठ द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात आलोचक एवं पक्षधर के संपादक प्रो. विनोद तिवारी, नई दिल्ली ने कहा कि साहित्य जगत में आलोचना एक संस्था की तरह होती है। संपादन भी एक संस्था की तरह होती है। आलोचना कभी पाठक को केन्द्र में रखकर नहीं लिखी जाती। वह पाठक के उन्मुखीकरण के लिए लिखी जाती है। वह पाठक को रचना पढ़ने के लिए उत्प्रेरण का काम करती है। ‘कहानी का रास्ता’ इसी दिशा में लिखी गई संस्मरणात्मक आलोचनात्मक निबंधों की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है।वरिष्ठ आलोचक एवं जेएनयू के प्रो. देवेन्द्र चौबे ने कहा कि रचनाकार-आलोचक का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है कि वह अपने समय में लिखे जा रहे रचनाकर्म पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण से दस्तावेजीकरण का कार्य करें। विधिवत डेटा के साथ उसे रेखांकित करें। उस दृष्टि से ‘कहानी का रास्ता’ आलोचना के दस्तावेजीकरण की एक नायाब पुस्तक है। यह सृजनात्मक गद्य का महत्वपूर्ण उदाहरण है।वरिष्ठ कथाकार एवं वनमाली सृजन पीठ, भोपाल के अध्यक्ष श्री मुकेश वर्मा ने कहा कि ‘कहानी का रास्ता पुस्तक में कहानी केन्द्र में होते हुए भी यह साहित्य की अन्य सारी विधाओं, विषयों और उनसे जुड़े मुद्दों की बात करती है। यह पुस्तक रचनात्मक विचारों का एक बेहतरीन गुलदस्ता है।वरिष्ठ कवि एवं वनमाली सृजन पीठ, दिल्ली के अध्यक्ष लीलाधर मंडलोई ने कहा कि कहानी का सजल है यह पुस्तक। हमारे समय में जो कलाएँ हैं, उनके कलात्मक तत्वों का समावेश बहुत शिद्दत से इस पुस्तक में हुआ है। इसमें पाठक को लोकेट किया गया है। पाठक को महत्व दिया गया है। यह पुस्तक अकादमिक जड़ता से मुक्त है। यह अपने समय के जरूरी सवालों को रेखांकित करती हैं, उन्हें उठाती है। यह एक बोलतीं किताब है। इसमें कहानी की दास्तानगोई की बात है।चर्चित कथाकार एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आशुतोष ने कहा कि संतोष चौबे जी की यह पुस्तक बातचीत की भाषा शैली में लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। उन्होंने इसे सर्वज्ञाता शिक्षक की तरह नहीं अपितु पाठक की तरह लिखा है। वे अवधारणाओं का बोझा नहीं उठाते बल्कि पाठक को भी संग साथ लिए चलते हैं।कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कथाकार एवं वनमाली कथा के संपादक कुणाल सिंह द्वारा किया। अतिथियों का स्वागत करते हुए स्वागत वक्तव्य कार्यक्रम की समन्वयक सुश्री ज्योति रघुवंशी, राष्ट्रीय संयोजक वनमाली सृजन पीठ द्वारा दिया गया। उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए की कार्यकारी संपादक डॉ. विनीता चौबे, एस.जी.एस.यू. के कुलपति डॉ. अजय भूषण, आर.एन.टी.यू.की प्रतिकुलपति डॉ. संगीता जौहरी, एस.जी.एस.यू. के कुलसचिव डॉ. सितेश सिन्हा, टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केन्द्र के निदेशक, डॉ. जवाहर कर्नावट, गीतकार डॉ. रामवल्लभ आचार्य, कवि बलराम गुमास्ता, कथाकार हरि भटनागर, गजलकार डॉ. विमल कुमार शर्मा, आईसेक्ट पब्लिकेशन के वरिष्ठ प्रबंधक महीप निगम, वनमाली सृजन केन्द्र भोपाल की अध्यक्ष डॉ. वीणा सिन्हा, विश्व रंग सचिवालय के सचिव संजय सिंह राठौर, युवा कवि मुदित श्रीवास्तव, लघुकथा केन्द्र की निदेशक श्रीमती कांता राय, मानविकी एवं उदार कला संकाय, एस.जी.एस.यू. की डीन डॉ. टीना तिवारी, वनमाली सृजन केन्द्र, भोपाल की संयोजक सुश्री विशाखा राजुरकर राज, सह-संयोजक डॉ. सावित्री सिंह परिहार, युवा गीतकार डॉ. मौसमी परिहार सहित बड़ी संख्या में भोपाल के साहित्यप्रेमियों, युवा रचनाकारों, प्राध्यापकों, विद्यार्थियों ने रचनात्मक भागीदारी की।